कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Thursday, June 15, 2017

Shakeel Samar रचित "शर्तिया ISHQ"


Shakeel Samar रचित "शर्तिया ISHQ" के बारे में कुछ भी लिखने से पहले, लेखक के डिस्क्लेमर को कोट करना चाहूंगा - "......मेरी इस किताब को हिंदी साहित्य की कोटि में रखने की कोशिश न की जाये....... मैं जो लिखता हूँ उसे पॉपुलर फिक्शन कहते हैं"
तो अंजुमन प्रकाशन के इस पॉपुलर फिक्शन को बेशक़ मैंने कुछ महीने पहले ऑनलाइन 150 में खरीदा था पर बिहार के ट्रैन यात्रा के दौरान पढ़ने के शुरुआत की, और बस उपन्यास की रोचकता ने ऐसा जकड़ा कि किसी फंक्शन में आने के बावजूद दो दिन के अंदर अंत करने पर ही सुकून मिला।
फिल्मी परिदृश्य सा झारखंड के छोटे से खूबसूरत शहर जमशेदपुर के अधिकतर मोहल्लों, सड़कों या गलियों में घुमाते हुए, हीरो हीरोइन सरीखे कबीर सिन्हा और वाणी को लेकर प्रेम कहानी का ताना बाना बुना गया है, जिसमें कहानी को बालीवुड लुक देते हुए विलेन अभिषेक गौतम, को-एक्ट्रेस सरला भी है। और तो और, कहानी के अंत से पहले एक और हीरोइन संध्या सीन में आती है, ताकि कुछ और रस भरा जा सके। पर सच पूछिए तो एक पाठक के तौर पर मैने पूरी किताब जो बेहद सहज सरल शब्दों में लिखी है, पढ़ते हुए फुल एन्जॉय किया।
कबीर की हताशा और दर्द को पढ़ते हुए अंदर तक महसूस किया जा सकता है। नए दौर के कहानियों की तरह सेक्स/किस का छौंक इसमें बड़े सलीके से डाला गया है। जो इजली डायजेस्ट होता है। सबसे महत्वपूर्ण पक्ष वो चिठियों की सीरीज लगती है जो कबीर, वाणी के लिए लिखते हुए ये सोचता है कि इन्हें वाणी तक नहीं पहुंचना है। पहली चिट्ठी की शुरुआत में ही कबीर लिखता है "......किसी इंसान की सबसे बड़ी त्रासदी क्या होती है? जब उसे कोई प्यारा करने वाला न हो और किसी खत की सबसे बड़ी त्रासदी क्या होती है? जब उसे वह इंसान ही न पढ़ पाए जिसके लिए लिखा गया है....."। ये बात दीगर है कि लेखक का प्लॉट ऐसा है जिससे नायिका सभी चिट्ठियां पढ़ती है।
मनुष्य का जीवन अजीब सी त्रासदियों से भरा है कभी कभी जिसका इलाज जीवन के उस अंग को काटकर ही किया जाना संभव होता है, या फिर अपने को ही अलग थलग कर लेता है। मानवीय मक्कारियों और सामाजिक कुरीतियों के वजह से कबीर की बहन का अंत भी मार्मिक लगता है। आधुनिक संवेदना की एक संकेतात्मक प्रस्तुति एक नवयुवक कथाकार के द्वारा परोसा जाना दिल को छूता है।
ये बिल्कुल सच है कि फिक्शन के तौर पर सोच कर पढ़ें तभी आप इस उपन्यास का मजा ले पाएंगे। एक मनोरंजक मूवी के तरह इस उपन्यास को पढ़ने के लिए 150 रुपये का सौदा बुरा नहीं है ।
युवा कथाकार शकील को इस दूसरे उपन्यास के लिए दिल से बधाई।

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