कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Thursday, May 19, 2016

शशि पुरवार के शब्दों में : हमिंग बर्ड


हमिंग बर्ड मुकेश कुमार सिन्हा का प्रथम संग्रह है , संग्रह का प्रकाशन २०१४ मे हुआ था, समीक्षा हेतु उनकी पांडुलिपी भी आई थी उसके उपरांत २०१५ में संग्रह हाथ में आया, व्यस्तता और अपरिहार्य कारणों से हमिंग बर्ड पर समीक्षा नहीं लिख सके थे. लेकिन कुछ शब्द न लिखे ऐसा नहीं हो सकता था। उनकी कलम को शुरुआती दौर से देखा छटपटाते देखा है। उसी छटपटाहट का रचना संसार है हमिंग बर्ड। मुकेश कुमार सिन्हा की रचनाएँ आम आदमी के आसपास घूमती हैं ,आम बोलचाल की भाषा में रचित रचनाएँ,पाठकों को उनकी पृष्ठभूमि से जोड़ती है. हमिंग बर्ड एक ऐसी चिड़िया है जो हर दिशा में अपनी उड़ान भरती है,उसी के अनुरूप मुकेश कुमार सिन्हा की रचनाएँ किसी एक पृष्ठभूमि या संवेदनाओं से नहीं उपजी है वरन रोजमर्रा की जिंदगी का आइना है। हर वर्ग की मासूमियत,छटपटाहट उनकी रचनाओं का संसार है. कवितायेँ ठेठ हिंदी भाषी न होकर मिश्रित भाषा की अभिव्यक्ति है। यहाँ अंग्रेजी भाषा का समावेश है तो आंचलिक भाषा की खनक भी है। कुल मिलाकर कविताओं में आम बोलचाल की भाषा प्रयुक्त की गयी है जो आम आदमी को उससे जोड़ती है। आम आदमी की तपिश, अंतःस की छटपटाहट जस की तस संग्रह में व्यक्त की गयी है।  
एक रचना है -- -मेरे अंदर का बच्चा /क्यों करता है तंग /अंदर ही अंदर करता हुड़दंग इसी प्रकार कवि का हृदय बच्चे के समान लड़खड़ाते हुए चलता है और कविताओं की सहज अभिव्यक्ति करता है, मध्यम वर्गीय, निम्न वर्गीय, काम की तलाश में घूमता आदमी ,कोने में पड़ा हुआ डस्टबीन, हाथ की लकीरे, पगडण्डी ,मकान, आवाज ,मेट्रो की लाइफ , जिंदगी का गणित, मृत्यु , मनीप्लांट , या सिरमिरिया पूल , उदासी। ...... जैसे अनगिनत विषय वस्तु का कविताओं में समावेश है। ऐसे विषय जिसके बारे में आसानी से कविता गढ़ देना सहज नहीं होता है. सभी परिस्थितियों में रची गयीं कवितायेँ नीरस नहीं है , अपितु सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत व्यवस्था व परिवेश से झूझती नजर आती हैं। 
कविता संवेदना शून्य नहीं होती है संवेदनाओं से जन्मी हुई कवितायेँ अपनी राह ढूंढ ही लेती है। सीखने - पढ़ने - लिखने की ललक कवि हृदय में हिलकोरे मरती है , इस संग्रह में कुछ हाइकु का समावेश है। रचनाओं की अकुलाहट उनके भीतर मौजूद है, कविताओं में शिल्प, लय , छंद को छोड़ दिया जाये तो रचनाएँ पाठक तक अपना कथ्य पहुँचाने में समर्थ है।  
हर परिस्थिति में रचे संवेदना के हर शब्द, विलक्षण है। पाठक इन रचनाओं को पढ़कर गुदगुदाता है। जीवन के हर प्रसंग को कवि ने भावपूर्ण , सरल अभिव्यक्ति द्वारा सहजता से व्यक्त किया है। एक कवि हृदय बच्चे की छटपटाहट है। जो उन्हें साहित्य सफर में आगे तक ले जाएगी। हमिंग बर्ड लोगों के दिलों पर राज कर चुकी है, मुकेश कुमार सिन्हा जी को तहे दिल से शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई , वह इसी तरह सृजन करते रहें और साहित्य के पथ पर नित नए कीर्तिमान स्थापित करें।
उन्ही के शब्दों में -- सुनो, अगर मेरे जाने के बाद कभी भी मेरी आवाज सुनना चाहो मेरी स्मृतियों की खनखनाहट से देना। ....... न आसमान को मुट्ठी में कैद करने की थी ख्वाहिश और न , चाँद तारे तोड़ने की चाहत कोशिश थी तो बस इतना तो पता चले कि क्या है अपने अहसास की ताकत। ...... इतना सा अरमान कि प्यार की ताकत मै ढूँढू अपनी पहचान। .......  
हार्दिक शुभकामनाओं सहित - शशि पुरवार





Tuesday, May 10, 2016

मंगला रस्तोगी के शब्दों में हमिंग बर्ड


हर किसी की अपनी एक अलग दुनिया होती है थोडी हकीकत थोड़ी कल्पनाओं से भरी दुनिया जिसमें बहुत कुछ घटता है..
मुकेश कुमार सिन्हा जी का काव्य संकलन " हमिंग बर्ड" भी कुछ ऐसा ही है! जीवन की हर छोटी बड़ी बात या कहें कि जीवन के हर प्रसंग में कविता रूप में हमिंग बर्ड अविराम उपस्थित है!  मुकेश  जी कीसबसे बड़ी खासियत यह है कि वह कविता को जीते हैं चलते-बैठते जागते सोते.. जिन्दगी की भागमभाग में भी कविता रचने की पूरी ईमानदारी से कोशिश करते हैं हर उस लम्हें से जिसे वह अपने आस-पास घटता महसूस करते हैं!  मेरा मानना है कि जो जिंदगी को लम्हा लम्हा जीता है वहीं कविताओं को इतनी संवेदनशीलता के साथ रच सकता है जैसी रची गई हैं.. हमिंग बर्ड में.. 

मेरी जिंदगी के
जिन्दा दिली के चौखट पर
जब देता है दस्तक
मेरा 5मिली ग्राम का छुटकू - सा मन
मारता है कुलाँचे
सिमित शब्दों से भरता है रंग
आसमान के कैनवस पर
दिख जाती है फडफडाती हुई हमिंग बर्ड
एवें ही बन जाती है कविता! 

मुकेश जी की कविताओं में स्त्री के विभिन्न रूप हैं, प्रकृति के रंगो के साथ बचपन और आते हुए बुढ़ापे की छटपटाहट भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है.. ☺
चालीस के बाद, पचास के पहले -
जहां शरीर तय कर रहा होता है सफर
निश्चित शिथिलता के साथ
ढुलमुल पगडंडियों पर
उम्र का यह अन्तराल
है एक रेगिस्तानी पड़ाव
जब होता है अनुभव
होता है वो सब जो हासिल करने की
की थी कोशिश हर सम्भव!
महीने की पहली तारीख -
जब आ जाती है
महीने की पहली तारीख
होता है हाथों में पूरा वेतन
परन्तु फिर भी होती है एक चुनौती..

कम नहीं होता एक मिडिल क्लास की जिंदगी में महीने की पहली तारीख का महत्व जब दिमाग में घुमड़ रहा होता है हिसाब किताब पूरे महीने का!
जिंदगी में पहचान खोजती साधारण सी घटना को भी मुकेश जी ने कविताओं के माध्यम से मानवीय अहसास की पहचान दी है.. कहना गलत नहीं होगा कि हिम्मत है उनमें..
*कबूतर की ओट से उम्मीदों भरा एक टुकड़ा आसमान साथ ले आने की जो आज नहीं तो कल होगा इरादों में
और फिर वजूद होगा मेरा
मेरे हिस्से का आसमान!

कोई भी कविता यूही नहीं लिखी जाती किसी भी कवि की कविता के पीछे एक सोच, भाव और कहानी या कारण होता है!
एेसा ही यहाँ भी है  *हमिंग बर्ड *की हर कविता को पढते हुए मैंने महसूस किया है प्रत्येक कविता में वजह है वेवजह कुछ नहीं लिखा गया है!  हाथ की लकीरें, पगडंडी, शेर सुनाऊँ, मेरे अंदर का बच्चा.. क्या सोचता है अपनी ही बात कहती मुकेश जी की यह हुडदंगी कविता अच्छी लगी! 

कुल मिलाकर मुकेश कुमार सिन्हा जी की कवितायें भी हमिंग बर्ड की तरह ही उन्मुक्त हैं जो स
मय, सीमा और बंधन को न मान कर जीने और आगे बढ़ने की ख्वाहिश है कि पाले किसी भी दिशा में उड़ सकने के लिये तैयार हैं
हमिंग बर्ड के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं  के साथ..

कवि का छुटकू सा (पांच) मिली ग्राम का मन भविष्य में अपनी सृजनशीलता के साथ एक सफल कवि व लेखक की उपस्थिति दर्ज कराता रहे यही ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ!
दोस्तों.. हमिंग बर्ड की.. कुछ कविताओं के अंश चित्र रूप में आप सभी के लिए उपस्थित हैं.. आप भी पढ कर आनंद ले!
शुभकामनाओं के साथ 

मंगला रस्तोगी!

प्रवीण मालिक के हाथों में हमिंग बर्ड 

Wednesday, May 4, 2016

लघु प्रेम कथा - 14


आल इंडिया रडियो के ऑडिटोरियम से बिहार क्विज चैम्पियनशिप के रनर्स अप का अवार्ड लेकर लड़का मंच से अपने पेयर के साथ उतर रहा था यह सोचते हुए की - प्रिलिमीनरी से अब तक, करीबन 250 पेयर्स में दुसरे स्थान पर रहना !! बेहतर ही है !! काश वो बेहतरीन होता तो उसकी टीम "बोम्बशेल" विनर होती !!

साला! बजर राउंड में नीचे सामने बैठी उस लड़की पर नजर न अटकी होती तो बजर समय पर बजता !! काश, हाथ न कांपा होता !!

तभी, एकदम सामने से आती वही लड़की हाथ बढ़ाते हुए चहकी - व्हाट ए सुपर्ब जॉब डन बाय यू ! मार्वेलस!! वेल डन!!! कांग्रेट्स!!!!
(बाप रे! इत्ती सारी अंग्रेजी!! लड़का हकबकाया)

थैंक्स!!!! - इतना ही जबाब दे पाया वो भी हकलाते हुए ! नजर फिर अटकी! ऐसे लगा जैसे किसी ने खेल खेल में कहा हो - स्टेचू !!

उसे कहाँ इतनी समझ थी की फैन/फोलोवेर्स भी कुछ होते हैं !

छूटते ही, अपने क्विज पेअर को बता रहा था - देख यार ! वो तो मेरे पर मर मिटी !! मैं तो आज का चेम्पियन !!

आखिर लड़की जा रही थी
लड़के ने पीछे से धीरे से कहा -
यू आर सो ब्यूटी फुल !
दो ठिठकती नजर फिर से टकराई !!
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लड़का अपने पेयर को छोड़ कर लड़की के साथ फ्रेजर रोड के एक छोटे से रेस्टुरेंट में चाट और गुलाबजामुन खा रहा था !! :)