कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, March 24, 2015

कल मैंने अपने मोबाइल से अपने न. पर फोन लगाया 
साला बीजी शो कर रहा था ........ !!
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मैं भी तो खुद से बात करना चाहता हूँ, पर मेरे अन्दर का "मैं" रेस्पोंस ही नहीं देता !!
बड़ी जलालत है न !!

Tuesday, March 17, 2015

लप्रेक 3

‪#‎लप्रेक‬ न. 3
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पल्सर पर अकेला ही तो जा रहा था कि
एक बस स्टैंड से थोडा पहले उसने बदहवासी के साथ हाथ हिलाया - लिफ्ट लिफ्ट !!
शायद होगी वजह जल्दी जाने की ।
उसने नही देखा था हेलमेट के अन्दर का पुरुष !
इसको !! इसकी आँखे चुंधिया गयी थी !
बला की खुबसूरत !!
चर्र !! चर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र ! खुद ब खुद, लगी थी ब्रेक !
अब दो साथ जा रहे थे
फिर रस्ते में मिले कुछ गड्ढो ने बाइक के ऊपर की फिजिक्स ठीक कर दी !
कुछ किलोमीटर के सफ़र व स्पर्श के अहसास से एकदम से केमिस्ट्री भी बन गयी थी smile emoticon
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एक ने छोड़ने से पहले गुड लक व थैंक्स कहा
दुसरे ने कहा - सेल न. दोगे ? :)

Tuesday, March 10, 2015

मधु सक्सेना के शब्दों में हमिंग बर्ड

हमिंग बर्ड मुकेश जी की साहित्य जगत के क्षेत्र में पहली उड़ान हैं । बड़े अरमानों और हौसलों से उन्होंने इस  कविता संग्रह को पाठको के सामने रखा है । पुस्तक का नाम और कलेवर बहुत सार्थक है कवि की भावनाओं के अनुरूप । पुस्तक का हर पन्ना हमिंग बर्ड के नन्हे पंख के समान लग रहा है । पुस्तक पढ़ती हुए कवि की भावनाएं परत दर परत सामने खुलता जाता है । लेखन, व्यक्ति के व्यक्तित्व का आइना होता है । मन में छुपे रहस्य आते गए सामने ,कविता के साथ कवि का भाव भी आकार लेता गया ।

          कविता, मन की उथल पुथल को उजागर करने का माध्यम भी है और उसका हल भी । अपने- अपने संसार की अहमियत और आवश्यकता दौनों साथ -साथ कदमताल करते हैं । मुकेश जी की कविताएँ उनकी हर मानवीयता को उजागर करती हैं , उनका प्यार, आक्रोश, आशा, निराशा और साथ में चलता है आत्म निरीक्षण ।ये आत्म निरीक्षण ही कवि और कविता को उत्कृष्ट बनाता है । मुकेश जी के शब्दों में कहीं भी नाटकीयता नहीं है। 'ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया ' की तरह जो देखा जो सोचा जो समझा उसको वैसा का वैसा रख दिया ।सादगी भरी ये कविताएं मन को मोह लेती हैं ।जीवन के साथ मृत्यु की स्वीकारिता लौकिक से परलौकिक होने की प्रक्रिया है -

       '' देखना मेरी आवाज और मैं
         बहुत पास ही मिलेगें
         बस महसूस करना
        और उन पलों में एक बार फिर
         जी लेना मुझे ......''

अपने शहर और अपने रास्ते से प्यार करने वाला ये कवि चाहता है --
''कहीं अंदर की कसक के साथ
   सोच रहा
    काश .....मेरा अंतिम सफर भी
        ले यहीं विश्राम ....।''

मुकेश कुमार सिन्हा अपने आसपास के वातावरण , पारिवारिक व सामाजिक सरोकारों से जुड़े महसूस होते हैं । आम आदमी उनकी कविताओं में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है जो सबसे ज्यादा निराश और सबसे ज्यादा आशावान होता है । 'महीने की पहली तारीख', 'मकान ', 'चालीस के बाद पचास के पहले, 'लाइफ इन मेट्रो' 'मेरा शहर 'आदि कविताएं जिंदगी के आसपास चलती फिरती उठती बैठती  नज़र आती हैं । 'सड़क' कविता में राह और जिंदगी का तालमेल, अपने आसपास की चीजों में ज़िंदगी की तलाश कवि  की ज़िन्दगी के प्रति सम्मान की भावना को प्रकट करती है । 'उदगार' 'यही होता है स्पर्श' 'नारी या पुरुष' आदि कई कविताओं में मुकेश जी ने स्पर्श, प्यार ,भरोसा ,सम्मान आश्वाशन, आदि को समेटा है जो की सफलता व ज़िन्दगी के लिये सम्बल हैं । लेखनी में कवि का प्यार भरा दिल अपनी झलक दिखला ही जाता है ।

      ' हाथ की लकीरे' में मुकेश जी आडम्बर पर दुःख व्यक्त करते दिखाई देते हैं तो कई रचनाओं में आत्म निरीक्षण के दौर से गुजरते हुए अपने दोषों को स्वीकार करने का साहस भी रखते हैं । वे अपने अंदर के बच्चे के साथ जीते भी नज़र आते हैं । शहीद के परिवार की व्यथा भी उन्हें व्यथित करती है ।'सब बदल गया ना ' में वे पर्यावरण की फ़िक्र करते नज़र आते हैं । अपनों के बिछड़ने का दुःख पंछियों से जोड़ देते हैं ।

      'आदमी आदमी ही रहेगा ' मैं क्या करूँ 'ये आफिस का काम और उनमे घुसपैंठ करती तुम ' बहुत सुंदर कविता है । कवि  अपनी सजगता का परिचय देता रहता है। 'अभिजात स्त्रियों ' में करारा व्यंग्य नज़र आता है तो' मित्रता का गणितीय सिद्धांत 'सड़क पे बचपन 'और 'कोंख में बेटी की पुकार 'का गरल वे चुपचाप गटक नहीं पाते। 'डस्टबिन' 'तकिये की प्रेम कहानी 'आदि विषय पर लिखना ओर उनको जिंदगी से जोड़ना हर कोई नहीं कर सकता जो मुकेशजी ने कर दिखाया ।
      कुल मिलाकर उनका काव्य संग्रह बहुत सुंदर व भावप्रधान है ।अपने नन्हे से दिल को उन्होंने खूब उड़ाया है ।भाषा सहज व सरल है और पाठक  को बांधे रखने में कामयाब है। मुक्त छंद में लिखी ये कवितायें 'हमिंग बर्ड 'के रूप में  साहित्य के आकाश में उड़ने को आतुर है ।कहीं कहीं कवि के लेखन का कच्चापन अपनी महक छोड़ जाता है ।प्रूफ की छोटी गलती भी है कहीं ।पर फिर भी बहुत अच्छा प्रयास है ये ।खूब लिखे मुकेश जी। मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ ---

''अपनी कविताओं को बाँधना मत
बहने देना भावों के अनन्त आकाश में
झरने देना हर मन पर
होने देना सुवासित
मन का हर कोना कोना ......
गरम तपिश में जीने की
कोशिश ही ज़िंदगी है -
होना है उद्धत अशेष होने के लिए
आखिर जीना इतना कठिन भी नहीं ......।
   शुभकामनाओं सहित 
हमिंग बर्ड का मूल्य  १०० रूपये है, जो हर साइट्स यथा इन्फिबिम, अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि पर अलग अलग डिस्काउंट पर  उपलब्ध है.  
~~मधु सक्सेना ~~
6 / 2 अमलतास परिसर
  शाहपुरा , भोपाल (मध्य प्रदेश )
   पिन  462016
  मो- 09425513161 

Thursday, March 5, 2015

लप्रेक 1 व 2

लप्रेक - 1smile emoticon
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मेट्रो स्टेशन, तेज धडधडाती मेट्रो आकर रुकी, चुईईईइ 
पूरा स्टेशन खाली 
बस एक बंदा बाहर, किसी और के इंतज़ार में 
दरवाजा खुला, एक दूसरी बंदी ने निहारा
नजरे मिली
कुछ अन्दर तक चमका .......
मेट्रो का दरवाजा बंद हो गया .........
कुछ हिचकी सी हुई .......
दोनों अपने अपने दिल को थामे आगे बढ़ गए
दुनिया बहुत बडी है न.........


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लप्रेक - 2
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शाम में जब अधिकतर लोग ऑफिस से जा चुके थे तभी
एक गन्दी साइट्स पर दिखा था 
तुम्हारा चेहरा
जिस्म भी
ऐसे ही ऊँगली माउस पर फिरने लगी
जैसे पकड़ा हो तुम्हारा हाथ
क्षणिक प्यार ऐसा ही होता होगा
सच्चे वाला प्यार न !!
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दुसरे दिन फिर तुम क्यूँ नही मिले ??