कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, April 25, 2017

दिल से .......

सच्चाई कहूँ तो हमे आजकल सिर्फ आलोचना करना आ गया है, हम सबने पहले से तय कर लिया की हमारी आँखे क्या देखेगी, हम किसको किस हद तक गिराना चाहते, किसको किस हद तक गिरा हुआ देखने के बावजूद उसमे देवत्व देखेंगे, ये भी हमने सोचा हुआ है| हम सबने अपनी संवेदनाओं को भी इस तरह से मुट्ठी में बांध लिया कि पेशाब पीना भी नाटक लग रहा था।
हो सकता है नाटक हो, उनके नाटक की पटकथा उन्होंने लिखी तो क्यों हम सर्जरी कर के या ग्रीन हाउस में घुस कर ये सिद्ध करने पर तुले हैं कि अजी ये तो सब कमीने कलाकार हैं | एक किसान कहीं मिनरल वाटर पी सकता है क्या ? याद रखियेगा मेरे दोस्त एक संत या एक भिखारी को जब कोई भोजन देता है तो वो ये नहीं कहता कि हमें तो सुखी रोटी ही चाहिए, वर्ना मेरे भिखारी होने पर संदेह हो जाएगा| भूख चूहे से भी भरती है, भूख मसालेदार चिकन से भी भरती है और उस मल से भी शायद जो वो खाकर जगाना चाह रहे थे |
अजी गोली मारिये किसानों को, हम तो जी रहे, जीते रहेंगे पर स्वयं को तो ऐसे स्थिति में कमतर तो मत कीजिये जिससे कभी खुद रोएं तो हम स्वयं को समझाने लगे की अरे मैं तो नाटक कर रहा था ।
सोररी बॉस, हर नाटक का पटाक्षेप हम क्यों करें, समय हर घाव को दाग भर देखता है, पर हर दाग अच्छे हों जरुरी नहीं .........साथ ही याद रखियेगा, बचपन में पढ़े थे, भारत किसानों खेतिहरों का देश है .....!!
दुसरे के दर्द में खिलखिलाहट ढूंढने वाले हम फेसबूकिया सिर्फ अपने संवेदनाओं को मरते देख रहे, और कुछ नहीं बदलने वाला ........... !

मन्नू भंडारी के साथ 

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