कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, February 16, 2016

"सृजन पक्ष" व्हाट्स एप ग्रुप पर मेरे कविताओं पर एक दिन



Madhu Saxena: आज कविताएँ पढ़ते है मुकेश कुमार सिन्हा की ।उन्होंने गणित और विज्ञान विषय को ज़िन्दगी से किस तरह जोड़ा ।
[08:50, 2/3/2016] Madhu Saxena: 
1. रूट कैनाल ट्रीटमेंट !!

तुम्हारा आना
जैसे, एनेस्थेसिया के बाद
रूट कैनाल ट्रीटमेंट !!

जैसे ही तुम आई
नजरें मिली
क्षण भर का पहला स्पर्श
भूल गया सब
जैसे चुभी एनेस्थेसिया की सुई
फिर वो तेरा उलाहना
पुराने दर्द का दोहराना
सब सब !! चलता रहा !

तुम पूरे समय
शायद बताती रही
मेरी बेरुखी और पता नही
क्या क्या !
वैसे ही जैसे
एनेस्थेसिया दे कर
विभिन्न प्रकार की सुइयों से
खेलता रहता है लगातार
डेटिस्ट!!
एक दो बार मरहम की रुई भी
लगाईं उसने !!

चलते चलते
कहा तुमने
आउंगी फिर तरसो !!
ठीक वैसे जैसे
डेटिस्ट ने दिया फिर से
तीन दिन बाद का अपॉइंटमेंट !!

सुनो !!
मैं सारी जिंदगी
करवाना चाहता हूँ
रूट केनाल ट्रीटमेंट !!
बत्तीसों दाँतों का ट्रीटमेंट
जिंदगी भर ! लगातार !

तुम भी
उलाहना व दर्द देने ही
आती रहना
बारम्बार !!
आओगी न मेरी डेटिस्ट !!

2. प्रेम के वैज्ञानिक लक्षण 


जड़त्व के नियम के अनुसार ही, वो रुकी थी, थमी थी,
निहार रही थी, बस स्टैंड के चारो और
था शायद इन्तजार बस का या किसी और का तो नहीं ?

जो भी हो,  बस आयी,  रुकी, फिर चली गयी
पर वो रुकी रही ... स्थिर !
यानि उसका अवस्था परिवर्तन हुआ नहीं !!

तभी, एकदम से सर्रर्र से रुकी बाइक
न्यूटन के गति के प्रथम नियम का हुआ असर
वो, बाइक पर चढ़ी, चालक के कमर में थी बाहें
और फिर दो मुस्कुराते शख्सियत फुर्र फुर्र !!

प्यार व आकर्षण का मिश्रित बल
होता है गजब के शक्तिसे भरपूर
इसलिए, दो विपरीत लिंगी मानवीय पिंड के बीच का संवेग परिवर्तन का  दर
होता  है, समानुपाती उस प्यार के जो  दोनों  के  बीच पनपता  है
प्यार की परकाष्ठा  क्या न करवाए !!
न्यूटन गति का द्वितीय नियम, प्यार पर भारी !!

प्रत्येक क्रिया के  बराबर और  विपरीत प्रतिक्रिया
तभी तो
मिलती नजरें, या बंद आँखों में सपनों का आकर्षण
दुसरे सुबह को फिर से करीबी के अहसास के साथ
पींगे बढाता प्यार
न्यूटन के तृतीय नियम के सार्थकता के साथ  !!

गति नियम के
एक - दो - तीन  करते  हुए  प्यार  की प्रगाढ़ता
जिंदगी में समाहित होती हुई
उत्प्लावित होता सम्बन्ध
विश्थापित होते प्यार की तरलता के बराबर !!

जीने लगते है आर्कीमिडिज के सिद्धांत के साथ
दो व्यक्ति
एक लड़का - एक लड़की !!

३. पहला  प्रेम 

पहला प्रेम
जिंदगी की पहली फुलपैंट जैसा
पापा की पुरानी पेंट को
करवा कर अॉल्टर पहना था पहली बार !
फीलिंग आई थी युवा वाली
तभी तो, धड़का था दिल पहली बार !

जब जीव विज्ञान के चैप्टर में
मैडम , उचक कर चॉक से
बना रही थी ब्लैक बोर्ड पर
संरचना देह की !
माफ़ करना,
उनकी हरी पार वाली सिल्क साडी से
निहार रही थी अनावृत कमर,
पल्लू ढलकने से दिखी थी पहली बार!!

देह का आकर्षण
मेरी देह के अंदर
जन्मा-पनपा था पहली बार
हो गया था रोमांचित
जब अँगुलियों का स्पर्श
कलम के माध्यम से हुआ था अँगुलियों से
नजरें जमीं थी उनके चेहरे पर
कहा था उन्होंने, हौले से
गुड! समझ गए चैप्टर अच्छे से !

मेरा पहला सपना
जिसने किया आह्लादित
तब भी थी वही टीचर
पढ़ा रही थी, बता रही थी
माइटोकॉंड्रिया होता है उर्जागृह
हमारी कोशिकाओं का
मैंने कहा धीरे से
मेरे उत्तकों में भरती हो ऊर्जा आप
और, नींद टूट गयी छमक से!!

पहली बार दिल भी तोडा उन्होंने
जब उसी क्लास में
चली थी छड़ी - सड़ाक से
होमवर्क न कर पाने की वजह से
उफ़! मैडम तार-तार हो गया था
छुटकू सा दिल, पहली बार
दिल के अलिंद-निलय सब रोये थे पहली बार
सुबक सुबक कर!
जबकि मैया से तो हर दिन खाता था मार !

मेरे पहले प्रेम का
वो समयांतराल
एक वर्ष ग्यारह महीने तीन दिन
नहीं मारी छुट्टियां एक भी दिन!!

वो पहला प्रेम
पहली फुलपैंट
पहली प्रेमिका
खो चुके गाँव के पगडंडियों पर
हाँ, जब इस बार पहुंचा उन्ही सड़कों पर
कौंध रही थी जब बचकानी आदत! सब कुछ
मन की उड़ान ले रही थी सांस
धड़क कर !!
--------------
कन्फेशन जिंदगी के ....

४. प्रेम से  झपकती पलकें

कैमरा के फोटो शटर के तरह
कुछ नेनो/माइक्रो सेकंड्स के लिए
झपकी थी पलकें !

और इन कुछ क्षणों में
मेरे आँखों के रेटिना  से होते हुए
दिमाग और दिल तक
कब्ज़ा जमा लिया था ......सिर्फ तुमने !!

पता नहीं, कितने तरह की तस्वीरें
ब्लैक एन वाइट से लेकर
पासपोर्ट/पोस्टकार्ड पोस्टर
हर साइज़ की वाइब्रेंट
कलर तस्वीरें,
सहेजते चला गया मन !!

थर्मामीटर के पारे के तरह तुम
एक जगह जमी, ताप के साथ
उष्ण, चमकती बढती हुई ........
"हैंडल विथ केयर" की टैग लाइन भूला मैं
और हो गया छनाक !!

पारे के असंख्य कण
बिखरे पड़े थे
और हर कण में चमक रही थी तुम !!

सच में बहुत खुबसूरत हो यार !!

५. चश्मे की डंडियाँ 
तुम और मैं
चश्मे की दो डंडियाँ
निश्चित दूरी पर
खड़े! थोड़े आगे से झुके भी !!
जैसे स्पाइनल कोर्ड में हो कोई खिंचाव
कभी कभी तो झुकाव अत्यधिक
यानी एक दूसरे को हलके से छूते हुए
सो जाते हैं पसर कर
यानी उम्रदराज हो चले हम दोनों

है न सही !!

चश्मे के लेंस हैं बाइफोकल !!
कनकेव व कन्वेक्स दोनों का तालमेल
यानि लेंस के थोड़े नीचे से देखो तो होते हैं हम करीब
और फिर ऊपर से थोडा दूर
है न एक दम सच .....
सच्ची में बोलो तो
तुम दूर हो या हो पास ?

ये भी तो सच
एक ही जिंदगी जैसी नाक पर
दोनों टिके हैं
बैलेंस बना कर ...... !!

बहुत हुआ चश्मा वश्मा !!
जिंदगी इत्ती भी बड़ी नहीं
जल्दी ही ताबूत से चश्मे के डब्बे में
बंद हो जायेंगे दोनों ....... !!
पैक्ड !! अगले जन्म
इन दोनों डंडियों के बीच कोई दूरी न रहे
बस इतना ध्यान रखना !!

सुन रहे हो न !!
--------------------
तुम बायीं डंडी मैं दायीं अब लड़ो मत
तुम ही दायीं  :)

[08:50, 2/3/2016] Madhukar Saxena: नाम :  मुकेश कुमार सिन्हा
जन्म : 4 सितम्बर 1971 (बेगुसराय, बिहार)
शिक्षा : बी.एस.सी. (गणित) (बैद्यनाथधाम, झारखण्ड) 
इ-मेल: mukeshsaheb@gmail.com 
ब्लॉग: "जिंदगी की राहें" (http://jindagikeerahen.blogspot.in/ ) 
      “मन के पंख” (http://mankepankh.blogspot.in/ )
फेसबुक पेज: मुकेश कुमार सिन्हा (https://www.facebook.com/mukeshjindagikeerahen)
ट्विटर हैंडल : https://twitter.com/Tweetmukesh 
मोबाइल: +91-9971379996
निवास: लक्ष्मी बाई नगर, नई दिल्ली 110023
वर्तमान: सम्प्रति कृषि राज्य मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली के साथ सम्बद्ध I  
संग्रह : “हमिंग बर्ड” कविता संग्रह (सभी ई-स्टोर पर उपलब्ध) 
सह- संपादन: "कस्तूरी", "पगडंडियाँ", “गुलमोहर”, “तुहिन” एवं “गूँज”  (साझा कविता संग्रह)
प्रकाशित साझा काव्य संग्रह: 
1.अनमोल संचयन, 2.अनुगूँज, 3.खामोश, ख़ामोशी और हम, 4.प्रतिभाओं की कमी नहीं  (अवलोकन 2011), 5.शब्दों के अरण्य में , 6.अरुणिमा, 7.शब्दो की चहलकदमी, 8.पुष्प पांखुड़ी 
  9. मुट्ठी भर अक्षर (साझा लघु कथा संग्रह), 10. काव्या 
सम्मान: 1. तस्लीम परिकल्पना ब्लोगोत्सव (अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसिएशन) द्वारा वर्ष 2011 के  
     लिए सर्वश्रेष्ठ युवा कवि का पुरुस्कार. 
2. शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा वर्ष 2012 के लिए "शोभना काव्य सृजन सम्मान"
3. परिकल्पना (अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसिएशन) द्वारा ‘ब्लॉग गौरव युवा सम्मान’ वर्ष   
   2013  के लिए 
    4. विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ से हिंदी सेवा के लिए ‘विद्या वाचस्पति’ 2014 में  
    5. दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2015 में ‘पोएट ऑफ़ द इयर’ का अवार्ड

[08:53, 2/3/2016] Madhu Saxena: आइये बात करते है  .. मुकेश की कविताओं पर ......

[08:55, 2/3/2016] +91 97690 23188: सुप्रभात दोस्तों मुकेश जी को कविताओं के लिए बधाई 🌹आभार मधु का

[09:01, 2/3/2016] ME : शुक्रिया इतने गौरवशाली मंच पर खुद को देख कर अभिभूत हूँ
थैंक्स मधु जी
[09:03, 2/3/2016] +91 99309 91424: स्वागत मुकेश जी
[09:03, 2/3/2016] +91 81205 77422: मुकेश जी हम भी अभिभूत है आपको यहाँ पाकर
[09:04, 2/3/2016] +91 95844 62633: मुकेश जी की कवितायें शानदार 💥
[09:06, 2/3/2016] +91 98163 43517: मज़े आये मुकेश की high tech कवितायेँ पढ कर। बहुत रोचक। नया कथ्य।चुस्त भाषा। अद्भुत आत्म व्यंग्य।
[09:06, 2/3/2016] +91 81205 77422: बहुत अच्छी कविताएँ मुकेश जी की।खासकर पहला प्रेम
[09:08, 2/3/2016] +91 99713 79996: धन्यवाद आप सबका
[09:10, 2/3/2016] +91 95844 62633: हाई टेक कवितायें 😊सही कहा विद्या जी ।
[09:11, 2/3/2016] +91 95844 62633: मुकेश 😀
[09:13, 2/3/2016] +91 94259 94259: मुकेश जी 
फेसबुक के आपके पेज से बतौर प्रशंसक अभी अभी जुड गया हूँ मैं 😊
[09:21, 2/3/2016] +91 98163 43517: चश्मे वाली आखिरी कविता का मज़ा तब आया जब पुरुष द्वारा स्त्री को दायीं आंख कहा गया। दायीं मने अंग्रेज़ी में right। पति पत्नी की प्यार भरी लड़ाई में जीत तो स्त्री की ही होती है
[09:22, 2/3/2016] ME: थैंक्स मुकेश सर 😊
[09:23, 2/3/2016] ME: विद्या जी 
वीमेन इस ऑलवेज राईट 😊
[09:24, 2/3/2016] +91 98163 43517: कहने के लिए हाँ।
[09:26, 2/3/2016] +91 98181 80314: मुकेश ji ने बड़ी ख़ूबसूरती से प्रेम  और कल्पना के धागों  को प्रेम की सुई और गणित और भौतिकी  की मशीन पर एक से सिलाई की है  बीच बीच में दवाओं का रफ़ू और ट्रीटमेंट भी है 
बहुत  बढ़िया बधाई
[09:32, 2/3/2016] +91 98163 43517: टीचर वाली कविता भी बहुत खूब। समझ गए चैप्टर अच्छी तरह से में ज़िदगी के पहले प्यार को चाक कलम पल्लू के बिम्बों से जैसे उकेरा है उसने इस समय को विचित्र आकर्षण दे दिया। डेंटिस्ट  वाली कविता पढ कर  खूब हंसी आई।

[09:44, 2/3/2016] कुमार सुशांत: देवघर कॉलेज में की गयी विज्ञान की पढाई का साफ़ असर मुकेश जी की कविता पर दिख रहा है।😄😄👍👍कुमार सुशांत।

[10:08, 2/3/2016] Surendra D Soni Rajasthan: वाह मुकेश भाई वाह! बड़ी कुशलता से आपने कविताओं का भौतिकीकरण कर दिया है। कविता का एक नया तेवर दिया आपने। बधाई।
[10:11, 2/3/2016] +91 99713 79996: शुक्रिया आप सबका
[10:16, 2/3/2016] Madhu Saxena: मुकेश की कविताएँ अलग तेवर की ... विज्ञान का छात्र साहित्य की क्लास में आ गया हो जैसे ......
आभार आप सबका ,.....
सन्तोष 
सूरज दादा 
अनुराग जी 
सन्ध्या 
विद्या दी 
मुकेश नेमा जी 
विजय जी 
सुशांत 
सोनी जी 
🙏🙏
[10:27, 2/3/2016] +91 96852 78181: विज्ञान का छात्र कविता की कसौटी पर खरा उतरा है। बधाई।
[11:36, 2/3/2016] Madhukar Saxena: 👌🏼👌🏼👌🏼

[12:40, 2/3/2016] +91 98934 23095: मुकेश जी की विज्ञानं पर आधारित कविता बिलकुल अलग अंदाज में।
न्यूटन के गति के नियम फिर याद आ गये।
बधाई मुकेश सिन्हा जी निराले अंदाज़ की कविता के लिए।
[13:04, 2/3/2016] +91 99713 79996: थैंक्स अर्चना जी
[15:09, 2/3/2016] Madhu Saxena: भूपिंदर  आभार ।
[15:14, 2/3/2016] Madhu Saxena: अर्चना ... अभी क्या है .. आर्कमिडीज ..माल्थस .. डार्विन  ..पाइथागोरस ..जाने कितने सिद्दांतआने  अभी बाक़ी है मुकेश की कविताओं में .. देखते जाओ । धन्यवाद अर्चना ...
[15:27, 2/3/2016] Parwesh Soni: मुकेश की कविताओं से परिचित हूँ ।वो एक साधारण से दिखने वाले भाव को लेकर अपनी अनोखी  सृजनात्मकता से असाधारण सृजन करने में माहिर है ।
या यूँ कहूँ तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी की इनका कवि मन सदैव कविता में ही विचरता रहता है ,चाहे यह अपने गमलों में  लगे पौधों से बतियाते हो या आफिस की फ़ाइलों के ढेर के पीछे गुम हो ।कई सारी कवितायेँ तो पढ़ कर में अचरज करती हूँ की इस विषय पर भी कोई कविता हो सकती है क्या ,जैसे पिछली बार डस्टबिन कविता हम सबने पढ़ी थी ।
आज की कवितायेँ भी ,चश्मे डंडिया और लेंस से साथ रहने और दुरी का समीकरण ,गज़ब का बिम्ब 
खेर अब ज्यादा हो गया ।
परिचय भी बड़ा विशाल हो गया अब तो इनका 
😃
एक बारगी तो मैं परिचय को भी कविता समझ कर पढ़ गई ,फिर पता चला की यह तो हमारे कवि के तमगे है ,उनकी शान है ।
चलिए आप यूँही सम्मान हासिल करते रहे और साहित्य जगत में अपना योगदान देते रहे 
शुभकामनाएं 
🙏🌹🙏
[15:31, 2/3/2016] +91 98934 23095: 😀😀😀🙏
[15:32, 2/3/2016] Ajeet Kumar झुंझुनू: मुकेश जी की बेहतरीन रचनाये ,......न्यूटन ,आइंस्टीन पर कविता रचने वालो से कहना चाहूँगा ,वे आर्य भट्ट पर भी लिखे ,लिखा जाना बाकी है ,अम्बेडकर पर भी लिखा जाना बाकी है .....
[15:39, 2/3/2016] +91 99713 79996: शुक्रिया  प्रवेश
[15:40, 2/3/2016] +91 99713 79996: जी  अजीत  शुन्य  पर  करूँगा  कोशिश ...........
[15:49, 2/3/2016] Madhu  Saxena: जरूर   मुकेश  शुभकामनाएं ।
[15:51, 2/3/2016] Madhu  Saxena: हाँ  जी अजित जी --- मुकेश सब लिखेगें । आपको निराश नहीं करेगें ।आभार ।
[15:53, 2/3/2016] Madhu Saxena: प्रवेश ....लिखित में मित्र का पता कितना ही बड़ा हो जाए हमारे लिए वही छुटकू सा पता काफी है ...... मुक्कु ..है ना ??
[15:53, 2/3/2016] Parwesh: 👍😊🙏
[16:08, 2/3/2016] +91 98163 43517: आर्यभट्ट ने अपनी धर्मपत्नी से पूछा,

" मुझे अपनी मित्र मंडली से मिलने और उनके साथ पार्टी करने की परमीशन तुम मुझे दोगी इस बात की कितनी संभावना है ?? "

पत्नी ने तिरछी नजरों से उन्हें देखा और बोली,

" प्राणनाथ, आपको कितनी संभावना लगती है ?? "
.
.
.
.
.
.
और इस प्रकार " शून्य " की खोज हुई!
[16:09, 2/3/2016] +91 98163 43517: शुन्य की बात पर यह बाहरी पोस्ट लगाने की धृषटता कर रही हूँ।
[16:11, 2/3/2016] Parwesh Soni: यह माफ़ नही होगी 

सजा के तोर पर कविता की तारीफ करनी होगी आप विनीता जी 
😃😃😃😃
[16:11, 2/3/2016] Madhu  Saxena: विद्या निधि जी
[16:12, 2/3/2016] Madhu  Saxena: ये मेसेज सभी के पास आ ही जाते है कहीं न कहीं  से  इसलिए ना ही भेजे तो ठीक ।
[16:13, 2/3/2016] +91 98163 43517: वैसे पत्नी की नज़र के शुन्य को मात दे सके ऐसा कोई बिरला ही मिलता है प्रवेश जी
[16:13, 2/3/2016] +91 98163 43517: ठीक है मधु जी
[16:15, 2/3/2016] Parwesh Soni: 👍😊
[16:16, 2/3/2016] Madhu Saxena: विद्या दी 😊😊😊😊😊
[16:18, 2/3/2016] +91 98163 43517: 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[16:19, 2/3/2016] Madhu Saxena: अब मुकेश शून्य कहाँ से उठाते है ।पत्नी से या ~~~~??
[16:19, 2/3/2016] Madhu Saxena: 😊😊😊
[16:20, 2/3/2016] +91 99713 79996: टॉपिक  बदला  न  जाये  😊
[16:21, 2/3/2016] +91 82696 96043: अच्छी कविताएँ।मैं भी विज्ञान की विद्यार्थी रही हूँ इस नाते कविताओं से निकटता भी महसूस कर रही हूँ।अपने कॉलेज के दिनों में कुछ तुकबंदी किया करती थी मसलन "मन जायलम तन फिलोयम होता है सीने से रोज़ वाष्पोत्सर्जन "।वाकई विज्ञान पढ़के साहित्य में आने का अनुभव ही अलग होता है।इस तरह के प्रयोग होने चाहिए।मुकेश जी को बधाई।💐💐
[16:30, 2/3/2016] +91 73881 78459: मुकेश जी की कविताओं मे बहुत रोचक अंदाज़ है अपनी बात कहने का . बहुत धारदार रचनायें . मुकेश जी को बधाई --
संध्या सिंह
[16:33, 2/3/2016] +91 99713 79996: थैंक्स  नेहा व संध्या जी
[16:35, 2/3/2016] +91 98163 43517: स्त्री पिरुष के लिए चश्मे के दो अलग लेंस की बात करना दरअसल दोनों के नज़रिये को समझाने के लिए कितना सटीक है।
[16:37, 2/3/2016] +91 98163 43517: लगता है मुकेश जी की कविताये स्त्री जाति को ही ज़्यादा भायीं हैं
[16:39, 2/3/2016] +91 99713 79996: 😊
[16:41, 2/3/2016] Dr. Rakesh: मुकेश जी 
अच्छी कवितायेँ। विज्ञान के जीवन के साथ रचे बसे होने को कवि के नज़रिये  से उकेरती हुईं। बधाई।
प्रसंगवश ~ वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने भी इस तरह से बहुत बेहतरीन लिखा है। "समुद्र पर हो रही है बारिश" कविता संग्रह में से कभी कुछ कवितायेँ एडमिन जी हम सबको पढवाएं।
अस्तु मुकेश भाई को अनेक बधाइयाँ।
[17:02, 2/3/2016] +91 98163 43517: 👍👍👍
[17:12, 2/3/2016] ME: धन्यवाद्  डॉ. राकेश
[17:26, 2/3/2016] +91 99262 58161: मुकेश जी की मनभावन कवितायेँ अच्छी लगीं।बधाई मुकेश जी
[17:38, 2/3/2016] Neha Naruka: विज्ञान की छात्रा हूँ। आज न्यूटन, माइटोकांड्रिया, आलिंद निलय इन सबसे कविता के माध्यम से मिलकर अद्भुत लगा। रेटिना के माध्यम से दिल में उतरना। प्रेम में न्यूटन के तीन नियम वाह गजब की कल्पनाशीलता। कॉलेज के दिन बायो, फिज़िक्स, केमिस्ट्री की लैब सब आँखों के आगे साकार हो गए। विज्ञानं और साहित्य का उत्कृष्ट संगम हैं आपकी कवितायेँ। बहुत बहुत बधाई आपको। 🙏🙏🙏🙏🙏😊😊

धन्यवाद सुरेन्द्र जी।🙏🙏🙏🙏😊😊
[17:39, 2/3/2016] +91 94251 50346: सभी कविताएँ अच्छी लगीं ।
पहला प्रेम , खासकर ।
[17:54, 2/3/2016] Surendra : मुकेश कुमार सिन्हा की प्रेम कविताओं में विज्ञान का तड़का । वाह मुकेश जी। इससे नए बिम्ब  आये हैं। विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धांतो को प्रेम पर परखा गया है या विज्ञान को प्रेम की कसौटी पर कसा गया है।दोनों ही स्थितियों में सिन्हा जी एक सफल कवि साबित हुए है। धन्यवाद मधु जी।
[18:22, 2/3/2016] Madhukar Saxena: आज तो सभी विज्ञान के विद्यार्थी अपने को खखोल रहे  होगें की साहित्य में कैसे लाएं उन सबको ।मुकेश ने एक दिशा दे दी की कविताओं की कोई सीमा नहीं ।विज्ञान ही क्या ...गणित , अर्थ शास्त्र ,नागरिक शास्त्र आदि को कैसे कविता में प्रयोग  किया जाय ? शरद कोकास जी ने मस्तिष्क और पुरातत्ववेत्ता को लेकर कविताएँ लिखी । कविता का आकाश इतना विस्तृत है कि -- मन और जीवन से जुडी हर बात उसमे कही जा सकती है ।पाई का मान( 22/7 ) हमेशा एक सा हो सकता है पर कविता का मान ... हमेशा सबके लिए अलग अलग ।बधाई  और शुभकामनाएं मुकेश । नई दृष्टि से देखा आपने कविता को ।
[19:02, 2/3/2016] +91 99713 79996: शुर्किया सुरेन्द्र सर, मधु जी, विनीता जी, महावीर जी, व अन्य
[19:12, 2/3/2016] +91 98204 45046: मुकेश कुमार जी की बहुत सुंदर कविताएँ। आभार
[19:18, 2/3/2016] +91 99313 45882: मुकेश जी की कवितायेँ अभी अभी पढ़ीं ! विज्ञान के विद्यार्थी तो बहुत कवि होते हैं लेकिन कविताओं के बिम्ब में विज्ञान का प्रयोग इतनी खूबसूरती से मैंने पहली बार देखा है ! निश्चय ही यह मुकेश जी की कविताओं की विशेषता है ! मेरी और से उन्हें ढेरों शुभकामनाएं💐💐
[19:19, 2/3/2016] +91 99313 45882: ओर से पढ़ें
[19:22, 2/3/2016] +91 98270 07736: मुकेश जी की कविताएँ दिलचस्प प्रयास हैं। खास कर दूसरी और तीसरी कविताएँ।
[20:03, 2/3/2016] ME: शुक्रिया शेखर जी / निरंजन सर / कविता जी ..........
[20:04, 2/3/2016] +91 99713 79996: शुक्रिया सृजन जिसके  कारण मेरी कविताओं  को  इतना  मान  मिला
[20:30, 2/3/2016] +91 99266 25886: स्वागत मुकेश कुमार सिन्हा जी। आपकी ताज़गी भरी कविताओं ने आकर्षित किया।वधाई।
[20:33, 2/3/2016] +91 99266 25886: बहुत धन्यवाद दोस्तों आपने इन कविताओं पर बहुत अच्छी बात की।
      संचालन के लिए आभार मधु जी।
[20:33, 2/3/2016] Madhu Saxena: 🙏🙏🙏
[20:38, 2/3/2016] +91 99266 25886: 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

[21:37, 2/3/2016] Deep Kuswah: आज की कविताएँ , विद्या जी की दी संज्ञा इस्तेमाल करूँ तो, हाईटेक कविताएँ.... कवि की अपनी मौलिक ईईस्टाइल की कविताएँ हैं । इनका अलगपन भाता है ।
पर, 
मित्र की सलाह, जल्दबाज़ी न करें,  थोड़ा ठहरें कविता के साथ.... हैंडल विद केयर 😄
मुकेश 🙏
[22:05, 2/3/2016] Madhu Saxena: वाह क्या बात कही दीप्ती 👌🏼👌🏼👌🏼
[22:21, 2/3/2016] HIRAMAN: मॉरीशस************

मित्रो ! आज के पोस्ट में लगी मुकेश सिन्हा जी की कविताएँ समीक्षा से अधिक ध्यान देने योग्य है.क्यों कि कविता की दुनिया में यह एक अलग तरीके का अनुभव है,जिस से हमें सीखना चाहिए या भरपूर लाभ उठाना चाहिए.मुकेश विज्ञान पढ़े-लिखे हैं यह ज़ाहिर है.पर उन्हों ने अपने इस विज्ञान के ज्ञान को कैसे काव्याभिव्यक्ति में ढाला है काबिले तारीफ है.उन की दुनिया विज्ञान है.मेडीकल क्षेत्र है और उसी स्थान स काव्य रचना के लिए शब्दावली ली है.मेडीकल जहां देह की चीड़-फाड़ है वहीं के शब्द दिल जोड़ते हैं.दो को एक बनाते हैं.यह यकीनन नए अनुभव की नई कविताएँ हैं जिन का हमें स्वागत करना चाहिए.

माधुरी दीक्षित ने एक दो तीन चार तो गाने में गायी. पर बच्चों ने आराम से गाकर खेल - खेल में गिनती सीख ली.मेडीकल की शब्दावली में कविता. आम के आम गुठली रे दाम !!
मेरे एक मित्र गाज़याबाद में रहते हैं [ सुनिल ] पर दिल्ली के एक प्रायवेट स्कूल में पढ़ाते हैं.संगीतकार हैं.गीत गाते हैं.कई वाद्य बजाते हैं.पर संगीत से पढ़ाते हैं.गणित भी संगीत से पढ़ाते हैं.अत: हम सभी के व्यवसाय अलग-अलग हैं पर साहित्य की वजह से साथ हैं.मुकेश कीे तरह हम भी अपने ग़ैर साहित्यिक ज्ञान को  साहित्य के लिए समर्पित भाव से उपयोग करें और साहित्य-लेखन में विविधता लाएँ.
मुकेश जी को बधाई. अडमिन का vision नाक तक नहीं है.उन को भी आभार.
[22:21, 2/3/2016] +230 5910 9094: https://youtu.be/EmlTZ9nk5TM
[22:52, 2/3/2016] +91 99713 79996: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[23:27, 2/3/2016] +91 94250 34312: कुुछ अलग तो है मुकेश की कविता में.
[23:35, 2/3/2016] +91 99266 25886: वाह हीरामन जी। सुन्दर व्याख्या।बहुत खूब।
[23:35, 2/3/2016] +91 99266 25886: सही है ब्रज भाई।