कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Wednesday, April 23, 2014

मेट्रो रुकती है, अनिकेत अपना बैकपैक संभाले हल्के कदमों के साथ मस्ती में गुनगुनाते हुए चढ़ता है। इस्स !! पूरा मेट्रो कम्पार्टमेंट खाली, व दूर वाली सीट पर एक खूबसूरत व भोली से नवयुवती बैठी थी। सधे कदमों से गुनगुनाते हुए अनिकेत वहीं पास पहुँच जाता है । पल भर में आंखे चार होती है, फिर एक जोड़ी खिलखिलाती हंसी, और समय कटने लगता है, मेट्रो के रफ्तार के साथ। 

नवयुवती का गंतव्य आने ही वाला है, वो पास आती है और फिर बिन कुछ कहे उसका हाथ अनिकेत के कमर मे होता है । उफ़्फ़ एक नवयुवक के लिए, ताजिंदगी याद करने लायक सफर लग रहा था। मेट्रो के रुकते ही वो स्वीट सी स्माइल के साथ जा चुकी होती है। दरवाजा बंद हुआ, अनिकेत व्हिसिल करते हुए सेल निकाल कर अपने किसी मित्र से बात करना चाहता है, चहकते हुए अपने सफर की मस्तियाँ शेयर करना चाहता है।

उफ़्फ़ !! आह !! सेल व वैलेट गायब हो चुका था !!!
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मानता हूँ, थर्ड क्लास कहानी है, पर पिछले तीन महीने की मेट्रो की रीपोर्ट कहती है की 126 में से 114 पॉकेट मार महिलाएं/युवतियाँ थी यानि 95%!!

तो सफर में अनिकेत न बनें !! सावधान रहें ........

Monday, April 21, 2014

ये स्मृतियाँ भी अजीब होती है न !!

बड़ी सारी खिलखिलाती खुशियाँ blooming flowers जैसे ढूँढने पर दिखेंगी, जो ता-जिंदगी आपके अंदर सहेजी हुई है ।

तो इसी स्मृति के हवन कुंड को प्रज्वलित करेंगे तो कुछ लाचार, बेबस, बासी शब्दो की आहुती भी हो जाएगी । किसी अलाव पर पानी मार दो फिर भी वाष्पित धुआँ जैसा कुछ रिस रिस कर निकलता रहता है। खिलखिलाते वक़्त में कुछ शख्स जो "हैं" से बंधे थे, जिसकी छाया मात्र आपको पुरसुकून भरी जिंदगी देती थी, वो कब "थी/था" में एक पल में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता । जरूरी नहीं होता जो आपके जीवन से जुड़ा हो उसके साथ आप समय काटें, भाव व एहसास का जुड़ा होना ही संबंधो के बीच कस्तुरी सी खुशबू भरती है ।

बचपन में याद है कोई पूछता कितने भाई-बहन हो, तो बड़े शान से कहते पूरे बारह !! आखिर चचेरा भी कुछ होता है, कहाँ पता था। दूरियाँ तो वक़्त और जरूरतें लाती है ।
हाँ, आज कोई नहीं पूछता फिर भी रात मे बिस्तर पर बंद आंखो में चिहुँक कर सोच आती है, अब तो सिर्फ दस रह गए।

दीदी व नीटू कब कैसे गए, ये बेकार की बात है, बस चले गए दोनों !!
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अभी भी और भाई बहनों से दूर ही हूँ, पर भैया हूँ सबका, मन को गर्वित करने के लिए यही काफी है :)

Sunday, April 20, 2014

ये जिंदगी की रफ्तार भी परेशानी का सबब होती है !! बहुत दिक्कत है............

कभी मेट्रो की तरह सुपर फास्ट व स्मूथ बिना किसी जाम के धराधार भागती हुई, तो कभी पथड़ीली सड़क पर पुराने सायकल के तरह  धीमी व खड़खड़ाती हुई, खीझ देती है । अत्यधिक तेजी खुद को एडजस्ट करने में दिक्कत देती है तो धीमापन मायूसी देता है, न हारते हुए भी कहीं लगता है सब कुछ छुट जाएगा, कितने पीछे रह जाएंगे । मन खटारे तिपहिये रिक्शे के ड्राइवर सा परेशान रहता है, ऐसा ल अगता है जैसे तीन मोटे सवारी के साथ रायसीना हिल्स पर चढ़ रहे हों।

"क्या करें, क्या न करें, ये कैसी मुश्किल आई, कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई ....... !"
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उफ ये ऊब, मायूसी, उम्र की निशानी तो नहीं ......... :) :)

Friday, April 11, 2014

ये तितलियाँ भी बिला वजह इस फूल से उस फूल, इस कली से उस कली तक मंडराती है, फरफराते सुनहले पंखो के साथ ... उन्हे क्या पता उनके सुकोमल पैर व पर पराग निषेचन का काम करते हैं, जिंदगी देते हैं, नई खुशियाँ वो बिना वजह ही फैलाती रहती हैं ॥ :)

शोख चमकते फूल, खिलखिलाते हुए अपने रंगीन पुष्प दल फैला देते हैं .......... आओ आओ न !! और बेचारी अचंभित तितलियाँ , इन रंगिनियों मे नए बहारों मे हँसती ठिठोली करती ....... और सतरंगे रंग भर देती है ...... :)
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आओ न कुछ रंग हम भी भरें, कुछ खुशियाँ मेरे कारण हो, कुछ खिलखिलाहट की वजह हम बनें ............. !!

आखिर मुसकुराना और मुस्कुराहट देखना उम्र बढ़ाती है :)

Tuesday, April 8, 2014

कितना अच्छा और मजेदार होता न, जो मानवीय भावनाओं को स्थूल रूप दिया जा सकता | पागलपन की गोलियां बनाई जाती - जो खोले, वही साहित्यकार | प्रेम की रंग बिरंगी टिकिया होती , जिसे दे दो वही रात के तारे गिने | कविता का भी पाउडर बाजार में बिका करता| तब तो हम हर मित्र को यही उपहार में भेजते | कविता की पुडिया पानी के साथ खाओ और फिर छंद लिखो, ज्यादा खा लिया तो धनाक्षरी, माहिया सोहर संगीत सब लिख डालो............... 
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सोचो सोचो, कोई ऐसी ईजाद क्यों नहीं !! आखिर ऐसी उल जलूल सोच ही तो खुशी देती है